भारत में चुनाव के दौरान उत्साह और हलचल का माहौल बना रहता है। जैसे ही चुनाव की तारीखों की घोषणा होती है, सभी राजनीतिक पार्टियां इसकी तैयारी में जुट जाती हैं। जहां सत्ता पक्ष को अपनी कुर्सी बचाने का दबाव होता है, वहीं विपक्ष अपने शासन की शुरुआत के लिए सक्रिय हो जाता है। आजादी के बाद से भारत की चुनाव प्रक्रिया में कई बदलाव हुए हैं।
पहले चुनाव बैलेट पेपर के जरिए होते थे, जहां कागज के टुकड़े पर अपनी पसंद की पार्टी को चुनकर वोटिंग की जाती थी। लेकिन इस प्रक्रिया में गड़बड़ियां और धोखाधड़ी के मामले सामने आते थे, जैसे फर्जी वोटिंग। इसे रोकने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल शुरू किया गया। लेकिन क्या आपने सोचा है कि चुनाव समाप्त होने के बाद इन ईवीएम मशीनों का क्या होता है?
ईवीएम के लिए विशेष नियम
भारत में पहली बार 1990 के दशक में ईवीएम का उपयोग किया गया। एक ईवीएम मशीन में लगभग 2,000 वोट दर्ज किए जा सकते हैं, लेकिन चुनाव आयोग ने इसे अधिकतम 1,400 वोट तक सीमित रखा है। वोटिंग के बाद ईवीएम को स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है। इन स्ट्रॉन्ग रूम्स की सुरक्षा बेहद कड़ी होती है। यहां कोई भी अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस या यहां तक कि बल्ब तक नहीं लगाया जाता।
काउंटिंग के बाद ईवीएम का क्या होता है?
जब काउंटिंग पूरी हो जाती है, तो ईवीएम को 45 दिनों तक स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है। इस अवधि के दौरान, अगर किसी पार्टी को पुनः काउंटिंग करवानी हो, तो उनके पास सिर्फ 45 दिन का समय होता है। इस अवधि के बाद, इन मशीनों को स्टोरेज रूम में शिफ्ट कर दिया जाता है। स्टोरेज में रखने से पहले सभी पार्टियों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति सुनिश्चित की जाती है और उनके हस्ताक्षर लिए जाते हैं।
जब अगला चुनाव होता है, तो इन मशीनों को फिर से उपयोग के लिए निकाला जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता और सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाता है।