Global Population Trends: दुनिया की आबादी में हो रही है ऐतिहासिक गिरावट! क्या होगा इसके असर से?
आज पूरी दुनिया में आबादी बढ़ रही है और इंसानों ने 8 अरब का आंकड़ा पार कर लिया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह बढ़ती आबादी जल्द ही एक बड़ा संकट बन सकती है? हाल ही में हुए एक अध्ययन ने यह चौंकाने वाला खुलासा किया है कि दुनिया की आबादी आने वाले दशकों में तेजी से घटने वाली है। यह एक ऐसा सच है जिसे नजरअंदाज करना मुश्किल है। वैज्ञानिकों ने इस बदलाव के बारे में चेतावनी दी है और इसका असर दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ने वाला है। क्या भारत भी इससे बच सकेगा? आइए जानते हैं।
यह भी पढ़ें:इतने में तो बाइक आ जाए! जानें, दुनिया के सबसे महंगे मुर्गे की कीमत!
दुनिया की आबादी में आए तेजी से उछाल के बाद अब घटने का खतरा
इतिहासकारों के अनुसार, होमोसेपियन्स बनने के बाद से मानव आबादी में निरंतर वृद्धि हुई है। दसवीं सदी तक दुनिया में आबादी कुछ करोड़ थी, लेकिन औद्योगिक क्रांति के बाद जीवन स्तर में सुधार हुआ और जनसंख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई। 1900 में जहां दुनिया की आबादी केवल एक अरब थी, वहीं 2000 तक यह छह अरब और 2022 तक आठ अरब हो गई। अब तक की आबादी वृद्धि दर को देखकर ऐसा लगता है कि यह अनियंत्रित रूप से बढ़ेगी, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है।

क्या कहते हैं नए अध्ययन?
हालिया अध्ययन और शोध से पता चला है कि दुनिया की बढ़ती आबादी की रफ्तार उलटने वाली है। 2055 तक 204 देशों के 155 देशों में जन्म दर इतनी कम हो जाएगी कि आबादी का स्थिर रहना मुश्किल होगा। 2100 तक यह स्थिति 198 देशों में देखने को मिल सकती है। इसके सबसे बड़े कारणों में एक है, जन्म दर का तेजी से गिरना। शोधकर्ताओं का कहना है कि आने वाले समय में मरने वालों की संख्या पैदा होने वालों से ज्यादा हो जाएगी। यह स्थिति अगर इसी तरह जारी रही तो दुनिया के सामने एक बड़ा संकट आ सकता है।
आबादी में गिरावट के प्रभाव:
यहां पर आपको ऐसा लग सकता है कि कम जनसंख्या से दुनिया के कई इलाकों में जीवन बेहतर हो जाएगा और संसाधनों पर दबाव भी कम हो सकता है। लेकिन, इस गिरती जनसंख्या से जुड़ी समस्याएं कहीं अधिक गंभीर हैं। सबसे बड़ा असर श्रमशक्ति पर होगा। अगर जनसंख्या घटती गई तो श्रमशक्ति भी घटेगी, जो कि आज की अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर खतरे की बात है। जैसे-जैसे श्रमशक्ति में कमी आएगी, उत्पादन और उत्पादकता पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा।
बूढ़ी होती आबादी का बोझ:
इसके अलावा, जनसंख्या का असामान्य वितरण एक और चुनौती पैदा करेगा। बूढ़ी आबादी का ख्याल रखना बहुत महंगा और कठिन होगा। चिकित्सा क्षेत्र पर भारी दबाव पड़ेगा, और योग्य कामकाजी लोगों की कमी होने से सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं। यह स्थिति केवल एक या दो देशों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि पूरी दुनिया में इसका असर देखने को मिलेगा। संसाधनों का प्रबंधन मुश्किल हो जाएगा और प्रदूषण में कमी जरूर आएगी, लेकिन विकास की रफ्तार भी धीमी हो जाएगी।
भारत पर भी पड़ेगा असर:
यह स्थिति केवल पश्चिमी देशों या जापान और चीन तक सीमित नहीं रहेगी। भारत भी इन चिंताओं से बच नहीं सकेगा। भारत में भी जनसंख्या बूढ़ी होती जाएगी और इसे संभालना मुश्किल होगा। खासकर भारत जैसे देश में, जहां पहले से ही सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव हो रहे हैं, वहां यह समस्या और भी जटिल हो जाएगी। सामाजिक स्तर पर बदलाव भारतीय संस्कृति को नुकसान पहुंचा सकते हैं और इससे महिलाओं पर ज्यादा बच्चे पैदा करने का दबाव बढ़ सकता है। परिवारों पर दबाव बढ़ेगा और संयुक्त परिवार को बनाए रखने की दिशा में जोर दिया जाएगा।

आरएसएस प्रमुख की चेतावनी:
इस विषय पर हाल ही में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था, “जनसंख्या विज्ञान कहता है कि जब किसी समाज की जन्म दर 2.1 से नीचे चली जाती है, तो वह समाज और परिवार खत्म होने लगते हैं। यदि हमें अधिक जनसंख्या चाहिए तो हमें हर परिवार में दो से अधिक बच्चों की जरूरत है। इसलिए हर परिवार में तीन बच्चों पर जोर दिया जाना चाहिए।
दुनिया में आबादी बढ़ रही है, लेकिन यह एक खतरे की घंटी हो सकती है। जनसंख्या घटने के बाद होने वाले प्रभावों से पूरी दुनिया के सामने नई चुनौतियां आएंगी। यह केवल संसाधन प्रबंधन तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका असर समाज, अर्थव्यवस्था और संस्कृति पर भी पड़ेगा। अगर हम आज से इसके बारे में नहीं सोचेंगे, तो भविष्य में इन समस्याओं से निपटना बहुत मुश्किल हो सकता है।