कल्पना कीजिए, अगर धरती का एक बड़ा हिस्सा टूटकर समुद्र में गिर जाए, जिससे 100 फीट ऊंची लहरें पूरे शहरों को बहा ले जाएं। या फिर, एक सुपर ज्वालामुखी के फटने से धरती का तापमान इतना गिर जाए कि हम एक नई हिमयुग में प्रवेश कर जाएं। और इन सबके नीचे, बर्फ के अंदर दबा हुआ कोई ज़हरीला राक्षस जाग जाए, जो पूरी दुनिया को तबाह करने की ताकत रखता हो।
यह कोई साइंस फिक्शन कहानी नहीं है, बल्कि वे प्राकृतिक खतरे हैं जो इंसानी जीवन को एक झटके में खत्म कर सकते हैं। आज हम चार ऐसे सोए हुए प्राकृतिक खतरों की बात करेंगे, जिनमें पूरी दुनिया को तबाह करने की क्षमता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ये आपदाएं कभी न कभी ज़रूर होंगी, लेकिन सवाल यह है कि कब

डूम्सडे ग्लेशियर
सबसे पहले बात करते हैं थवेट्स ग्लेशियर की, जिसे डूम्सडे ग्लेशियर भी कहा जाता है। इसे यह नाम क्यों दिया गया है, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।
हमें पता है कि समुद्र का स्तर दिन-ब-दिन बढ़ रहा है, जिससे मानव जाति के लिए नई चुनौतियां पैदा हो रही हैं। लेकिन आने वाले समय में इन चुनौतियों का आकार और हमारी तैयारी का समय काफी हद तक इस ग्लेशियर पर निर्भर करता है।
पश्चिमी अंटार्कटिका में स्थित यह ग्लेशियर कई जगहों पर 1 किलोमीटर से अधिक गहरा है, जो बुर्ज खलीफा की ऊंचाई से भी ज्यादा है। यह 1,92,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें 318 मुंबई या 50 कराची जैसे शहर समा सकते हैं।
यह ग्लेशियर अन्य अंटार्कटिका के हिस्सों की तुलना में बहुत तेजी से पिघल रहा है और अब तक समुद्र के स्तर में 4% की वृद्धि कर चुका है। इसका सबसे खतरनाक पहलू इसका स्थान है। यह पश्चिमी अंटार्कटिक आइस शीट का हिस्सा है। अगर यह पूरी तरह से पिघल गया, तो यह पूरी आइस शीट को अस्थिर कर सकता है, जिससे समुद्र का स्तर 3 मीटर (10 फीट) तक बढ़ सकता है।
1992 से अब तक समुद्री पानी ने इस ग्लेशियर को 14 किलोमीटर अंदर तक खोखला कर दिया है। यदि यह दर जारी रही, तो यह ग्लेशियर टूटकर समुद्र में गिर सकता है। और ऐसा होने पर तटीय क्षेत्रों में अरबों लोगों की जान खतरे में पड़ जाएगी।

येलोस्टोन सुपरज्वालामुखी
अब बात करते हैं येलोस्टोन सुपरवोल्केनो की, जो अमेरिका के व्योमिंग राज्य में स्थित येलोस्टोन नेशनल पार्क में है। यह दुनिया का सबसे बड़ा और खतरनाक सुपरज्वालामुखी है। यह सामान्य ज्वालामुखी पहाड़ों की तरह नहीं है, बल्कि इसके नीचे एक विशाल मैग्मा चेंबर है। अगर यह फटता है, तो इसका प्रभाव केवल अमेरिका तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ेगा।
यह ज्वालामुखी 70 किलोमीटर लंबा और 50 किलोमीटर चौड़ा है। इतिहास में यह हर 6-7 लाख साल में फटा है, और आखिरी बार यह 6,40,000 साल पहले फटा था। विशेषज्ञों का मानना है कि अगले 60,000 साल में यह फिर से फट सकता है।
अगर यह फटता है, तो इसके 1,000 किलोमीटर के दायरे में आने वाले शहर पूरी तरह नष्ट हो जाएंगे। ज्वालामुखीय राख और सल्फर डाइऑक्साइड वायुमंडल में फैल जाएगी, जिससे सूरज की रोशनी जमीन तक नहीं पहुंच पाएगी। यह स्थिति वर्षों तक बनी रहेगी, जिससे धरती का तापमान गिर जाएगा और एक ज्वालामुखीय सर्दी (Volcanic Winter) शुरू हो जाएगी।

कुम्ब्रे विएखा ज्वालामुखी
कनरी द्वीप समूह में स्थित ला पाल्मा द्वीप का कुम्ब्रे विएखा ज्वालामुखी तीसरा बड़ा खतरा है। यह द्वीप 40 लाख साल पहले ज्वालामुखीय गतिविधियों से बना था और आज भी सक्रिय है। पिछले 60 वर्षों में यहां हुई गतिविधियों ने द्वीप में बड़ी दरारें पैदा कर दी हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर यह ज्वालामुखी बड़े पैमाने पर फटा, तो 500 अरब टन वजनी चट्टान समुद्र में 250 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गिर सकती है। इससे मेगा सुनामी पैदा होगी, जिसकी लहरें 1 किलोमीटर ऊंची होंगी और 4,000 मील तक यात्रा करेंगी।
यह सुनामी यूरोप, अमेरिका और अफ्रीका को गंभीर रूप से प्रभावित करेगी। 100 फीट से अधिक ऊंची लहरें तटीय शहरों को तबाह कर सकती हैं। अमेरिका के पूर्वी तट, विशेष रूप से मियामी और ऑरलैंडो जैसे शहर, सबसे अधिक प्रभावित होंगे। समय पर निकासी न होने पर लाखों जानें जा सकती हैं।

पिघलती पर्माफ्रॉस्ट
अंत में, पर्माफ्रॉस्ट का खतरा है। यह जमीन का वह हिस्सा है, जो पूरे साल शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे रहता है। यह मुख्य रूप से कनाडा, रूस और तिब्बत के ध्रुवीय क्षेत्रों में पाया जाता है। लाखों वर्षों से यह स्थिर था, लेकिन अब वैश्विक तापमान बढ़ने के कारण इसकी सक्रिय परत पिघल रही है।
पर्माफ्रॉस्ट में जैविक पदार्थ, जैसे पेड़-पौधे और जीव-जंतु, जमे हुए हैं। जब यह पिघलता है, तो बैक्टीरिया इन जैविक पदार्थों को तोड़ते हैं और मीथेन गैस छोड़ते हैं, जो एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है। पर्माफ्रॉस्ट में वर्तमान वायुमंडल की तुलना में चार गुना अधिक कार्बन मौजूद है।
अगर यह कार्बन वातावरण में पहुंच गया, तो यह जलवायु परिवर्तन को तेज कर देगा। समुद्र का स्तर 5 मीटर तक बढ़ सकता है, और भूमध्य रेखा के पास रहने वाले क्षेत्रों में जीवन असंभव हो जाएगा। साइबेरिया में बाटागाइका क्रेटर, जो पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से बना है, इसका जीवित उदाहरण है।
ये चार प्राकृतिक खतरे धरती और मानवता के अस्तित्व के लिए गंभीर चुनौतियां पेश करते हैं। चाहे वह डूम्सडे ग्लेशियर का पिघलना हो, येलोस्टोन का विस्फोट, कुम्ब्रे विएखा की सुनामी, या पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना—इन सभी का प्रभाव विनाशकारी हो सकता है। इनसे बचने के लिए समय रहते जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय मुद्दों पर ठोस कदम उठाना जरूरी है।